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Monday 14 May 2018

Just a Wood Stick

सालों पहले, बॉस के एक जंगल के बीचोबीच जंगल का सबसे बेरूप पेड़ खड़ा रहता था I उसकी हर डाली एक दूसरे से अलग थी I छोटी, बड़ी, मोटी बेढंगी I पत्तियाँ कम होने के कारण वो अपने बच्चो के भिन्न रूप को छुपा नहीं पाता था I
उस पेड़ की सबसे छोटी डाली सबसे नीचे रहती थी I डाली को संगीत का बहुत शौक था पर वो गा नहीं सकती थी I इसलिए उसके दोस्त उसे सुरीली कहके चिढ़ाते I दिन में नीचे खेलते खरगोश और गिलहरी हस्ते और कहते , ‘ओ सुरीली, तुम्हारी बुलबुल दूसरी डाल पे चली जाएगी आज I'
एक बुलबुल रोज शाम को सुरीली पे आके बैठती और सूर्यास्त का इंतज़ार करती I उसे देखते ही सुरीली खुश होजाती और उस का नाम पूछती, पर बुलबुल कभी उत्तर नहीं देती I ये सिलसिला देखने गिलहरी और खरगोश रोज़ बाहर आते और पेट पकड़ पकड़ के हसने लगते I बुलबुल सूरज को डूबता देख गाना शुरू करती और आखिरी किरण डूबने के साथ उड़ जाती I
ये सिलसिला कुछ महीनो बाद बादल और बिजलिया लाया I वर्षा-ऋतु का मौसम आ गया था I सुबह से ही बादल छाए हुए थे I हवा बढ़ते बढ़ते आंधी में बदल गयी I सब पशु-पक्षी छुप गए, डालियाँ झुक गयी I बारिश गिरने लगी थी I सूरज ने बादलों के पीछे कहीं डूबना शुरू कर दिया था पर सुरीली को बुलबुल का इंतज़ार था I खाली आसमान देख कर गिलहरी और खरगोश की बातें उसके कानों में बजने लगी थी I वो पूरी भीग चुकी थी पर उसने आसमान को ताकना नहीं छोड़ा I उचक कर दूर तक देखने को छटपटाने लगी I बारिश की तेज़ फुहार से उसकी लकड़ी कमज़ोर होने लगी I पेड़ ये देख कर क्रोधित हो चिल्ला उठा, ‘छोटी सी डाली को इंसान लकड़ी का टुकड़ा कहते है i टूट के नीचे गिर गयी तो इंसान के चूहले में जलेगी I
पर सुरीली नहीं घबराई I उसने पेड़ से कहा की संगीत में ही उसकी जान बस्ती है I ये सुन कर तूफ़ान ने उसे पेड़ से नीचे गिरा दिया I
पेड़ अपनी डाली को गिरा देख रो पड़ा I उसके आसूँ देख सुरीली का हौसला डगमगा गया I पर बुलबुल पे उसे विश्वास था I बुलबुल आएगी तो उसी पे बैठेगी और डूबते सूरज के साथ गाएगी I रोते-डरते रात बीती I सुबह होते ही बिल से छुप कर देख रहे गिलहरी और खरगोश बाहर आये और सब मिल के सुरीली को इंसानो से छुपाने का उपाय सोचने लगे I
व्यापारियों का एक झुण्ड जंगल से होके गुज़र रहा था I चहलपहल सुनके गिलहरी दौड़ी और सुरीली को बिल की तरफ धक्का देने लगी I पर सुरीली ने उसे रोक दिया I आवाज़ों में किसी के गाने की आवाज़ शामिल थी I गाना सुनके सुरीली का मन थिरक उठा और अपने बेजान शरीर को ज़मीन पर घिसटने की कोशिश करने लगी I
गाने वाले मुरली की नज़र पेड़ के आसपास इखट्टे पशुओ पर पड़ी I धूप की किरणों में सुरीली का गीला हुआ शरीर चमक रहा था I डाली पर खेलती किरणों ने गायक को सम्मोहित कर दिया I वो सुरीली को उठा के ले गया I
शाम होते ही बुलबुल आगयी I वो उड़ के नीचे गयी पर अपनी बैठने की डाली को ना पा कर नीचे बैठी गिलहरी से पूछा, ‘सुरीली कहा है ?’ गिलहरी ने अचंभित होकर सवाल किया, 'जिस डाली पे आप बैठती थी, उसकी आवाज़ आप तक नहीं पोहचती थी तो उसका नाम कैसे जाना ?'
बुलबुल ने मुस्कुरा कर कहा की वो उसी डाली पे आके बैठती और गाती क्यूंकि सुरीली का जूनून था संगीत I बिना सुनने वाले के गाने वाले का क्या काम I शर्मिंदा होकर गिलहरी ने बुलबुल को सब हाल बताया I
बुलबुल उड़ती उड़ती जंगल के पार गायक को ढूँढ़ते हुए गाँव पोहची I गाँव में पूछते -पाछते वो संगीतकार के घर पोहची और गाने लगी I जैसे ही उसने गाना शुरू किया, मुरली भागा-भागा बाहर आया और बुलबुल को देख फिरसे अंदर की और दौड़ पड़ा I कुछ ही पल बीते थे कि अंदर से एक आम सी मीठी धुन बजने लगी I बुलबुल ने कुछ सोच कर गाना रोका पर धुन बजती रही I बुलबुल ने फुर्र से उड़के खिड़की से अंदर देखा तो उत्साह में धुन से स्वर मिला दिया I
बेजान लकड़ी के टुकड़े ने हिम्मत नहीं हारी I  इंसान के होठो पे सजी है बॉस कि सुरीली - बांसुरी I